देश में फैमिली प्लानिंग नहीं होती तो आज हमारी जनसंख्या 307 करोड़ यानी दोगुनी से भी ज्यादा होती। यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में जनसंख्या पर रिसर्च कर रहे जेएनयू के प्रोफेसर डॉ. श्रीनिवास गोली की रिसर्च के अनुसार, 1990 से 2016 तक भारत में 169 करोड़ बच्चों का जन्म होता। यानी आज की आबादी 138 करोड़ नहीं बल्कि 307 करोड़ हाेती।
फैमिली प्लानिंग देश में 2016 से 2061 तक 45 साल में 1.90 अरब लोगों को जुड़ने से रोकेगी। प्रोफेसर गोली बताते हैं- जिन देशाें ने जबर्दस्ती जनसंख्या नियंत्रण की नीतियां लागू कीं, आज वो पछता रहे हैं। यूरोप, जर्मनी, जापान में जनसंख्या नहीं बढ़ पा रही है। अब वे बच्चों को जन्म देने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। हमारी जनसंख्या हमारा बोनस है।
ऑप्टिमम पॉपुलेशन और रिप्लेसमेंट फर्टिलिटी के सिद्धांत का जनगणना में सबसे ज्यादा महत्व है। इटली, फ्रांस, स्वीडन जैसे देशों में तो काम करने के लिए पर्याप्त लोग ही नहीं हैं। अगर इन देशों में भारत से नर्स नहीं जाएं तो वहां का हेल्थ केयर सिस्टम गिर जाएगा। यही कारण है कि दो बच्चों का सिस्टम बेहतर है और यही चलना चाहिए।
2061 तक भारत में भी जन्म दर 1.8 यानी दो बच्चों से कम होने का अनुमान है, जो ठीक नहीं है।
आबादी बढ़ने से फायदा; 1 रु. खर्च कर 45 रुपए बचाए सरकार ने
प्रोफेसर गोली बताते हैं- आबादी बढ़ने का फायदा अर्थव्यवस्था को भी हुआ है। सरकार ने फैमिली प्लानिंग में जो खर्च किया, वो जनसंख्या नियंत्रित होने से आर्थिक रिटर्न के रूप में मिला। इसे सरल तरीके से समझा जाए तो यदि 1991 में सरकार ने फैमिली प्लानिंग पर एक रुपया खर्च किया तो सरकार ने 4 रु. बचाए। 2016 में ये फायदा बढ़कर 45 रु. हो गया। 2061 तक यह एक रुपया 628 रु. का फायदा या बचत देगा।
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